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तीज त्योहार बचेगा तभी बचेगी छत्तीसगढिय़ा संस्कृति भी

अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने हरेली और तीज त्योहार पर मुख्यमत्री भूपेश बघेल की सार्वजनिक अवकाश की घोषणा अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत बनाने एवं छत्तीसगढिय़ा अस्मिता को संवारने की दिशा में बड़ी पहल

दक्षिणापथ दुर्ग। हरेली और तीजा छत्तीसगढिय़ा के जीवन के सबसे बड़े त्योहार हैं। बेटियां उत्साह से अपने मायके जाती हैं। उनके भाई उन्हें लेने आते हैं। एक तरह से बेटियों का बचपन फिर से वापस आ जाता है। हरेली किसान की समृद्धि का त्योहार है। यह जश्न है बच्चों का, गेड़ी पहनकर अपनी धुन में बच्चे निकल पड़ते हैं। इन त्योहारों में अब तक सार्वजनिक अवकाश नहीं था। तीज त्योहारों में माताओं को अवकाश था लेकिन उनके बच्चों के स्कूल बंद नहीं होते थे। उनके भाई या पति को अवकाश नहीं होता था कि वे उन्हें मायके तक छोड़े आएं। इधर के बरसों में शहरों में तीजा की परंपरा विस्मृत होती जा रही थी। अवकाश नहीं मिलता था तो बेटियां भी घर में पूजा कर लेती थीं। शासन के इस निर्णय से उल्लास का माहौल बनेगा। एक पूरा दिन बेटियां अपने मायके में गुजार पाएंगी, एक दिन जो उनका होगा। शासन के इस निर्णय से सरकार का एक ऐसा संवेदनशील चेहरा सामने आया है जो केवल लोगों की समस्याओं को हल करने के लिए ही सचेष्ट नहीं है जो केवल लोगों की आर्थिक तरक्की के लिए ही काम नहीं कर रहा अपितु लोगों के जीवन में छोटी-छोटी खुशियां बिखेरने के लिए भी निर्णय ले रहा है। भूटान की तरह यदि छत्तीसगढ़ में भी हैप्पीनेस इंडेक्स कार्य कर रहा होता तो इस निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ में हैप्पीनेस इंडेक्स एक दिन में ही काफी ऊपर चढ़ जाता।
जिस तरह मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ की नदी-नालों के संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। उसी तरह सांस्कृतिक जड़ों का संरक्षण भी बेहद आवश्यक है। इसकी मिसाल तब भी देखी जब उन्होंने मल्टीप्लैक्स में छत्तीसगढ़ी फिल्म देखी। जब भी बेटियों से जुड़ी कोई बात आती है तो अमीर खुसरो जरूर याद आते हैं। उनका एक खूबसूरत दोहा है। अम्मा मेरे बाबूल को भेजो री कि सावन आया। छत्तीसगढ़ में भी बेटियां जरूर तीज त्योहार में ऐसा ही कुछ सोचती होंगी, अब तीज त्योहार पर उन्हें अपने बाबूल के आने का सुकून मिल पायेगा।
एक और भी बात है जो हरेली, करमा जयंती जैसे त्योहारों से जुड़ी है। यह कृषि संस्कृति से जुड़े हुए त्योहार हैं। यह पशुधन और गोवंश के संरक्षण से संबंधित त्योहार हैं। पोरा के दिन बैलों की पूजा करते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन गायों की पूजा होती है। यह उत्सव हमें याद दिलाते हैं कि हमारी समृद्धि का आधार यह पशुधन है। यह प्रकृति है हम इनकी उपेक्षा करेंगे तो अपने आर्थिक विकास को भी उपेक्षित करेंगे।
छत्तीसगढ़ की सबसे बड़ी आबादी जनजातीय आबादी है। इनके सरोकारों से जुड़कर शासन ने विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की। यह स्वागत योग्य है। यह ऐसा दिन होता है जब सभी लोग जनजातीय लोगों के सरोकारों पर बात करते हैं। निर्णय लेते हैं। इसी तरह छठ पूजा पर भी सार्वजनिक अवकाश का निर्णय शासन ने लिया है। छठ की पूजा पर अवकाश से बड़ी संख्या में इस पर्व को मनाने वाले नागरिकों को खुशी तो होगी ही, यह सरोवरों और नदियों के संरक्षण की दिशा में भी बड़ा काम है। यह पर्व केवल सूर्य की पूजा का नहीं है। अपनी जीवनदायिनी नदियों और सरोवरों के संरक्षण की याद भी हमें दिलाता है।
(सौरभ शर्मा, जनसंपर्क अधिकारी दुर्ग छ.ग.)

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