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भारत में अभी भी जवान आदमी बहुत कम है-वरुण मिश्रा..
वरुण मिश्रा
दोस्तो आज युवा और भारत के भविष्य के संबंध मे कुछ बाते आप से करना चाहता हूँ।
कुछ प्राथमिक बात कहूँ तो युवा वो होता है जिसकी नज़र भविष्य कि ओर होती है जो फ्यूचर ओरिएंटेड है और मैं उस व्यक्ति को बूढ़ा कहता हूँ जो पास्ट ओरिएंटेड है जो पीछे कि ओर देखता रहता है। अगर हम बूढे आदमी को पकड़ ले तो वो सदा अतीत कि स्मृतियों में खोया हुआ मिलेगा वो पीछे कि बातें सोचता हुआ, पीछे के सपने देखता हुआ मिलेगा।
बूढ़ा आदमी हमेशा पीछे की ओर ही देखता है जवान आदमी भविष्य की ओर देखता है और जो कौम भविष्य की ओर देखती है वह कौम जवान होती है और जो अतीत की ओर पीछे की ओर देखती है वह बूढ़ी हो जाती है।
हमारा देश सैकड़ो सालों से पीछे कि तरफ देखने का आदि रहा है हम सदा ही पीछे की तरफ देखते है जैसे भविष्य है ही नही, जैसे कल होने वाला ही नही है जो बीत गया वही सब कुछ है। ये जो हमारी दृष्टि है, हमें बूढा बनाती है।
अगर हम रूस के बच्चो को पूछे तो वो चाँद पर मकान बनाने के संदर्भ मे विचार करते मिलेंगे, अगर अमिरिका के बच्चों को पूछे तो वो भी अंतरिक्ष की यात्रा के लिए उत्सुक है। और वही भारत के बच्चों से पूछे तो उनके पास भविष्य की कोई योजना, भविष्य की कोई कल्पना, भविष्य का कोई भी स्वप्न, भविष्य का कोई यूटोपिय नही है और जिस देश के पास अपने भविष्य का कोई यूटोपिय ना हो वो देश भीतर से सड़ना शुरू हो जाता है और मर जाता है। जिनके मन मे भविष्य की कल्पना खो जाए उनका भविष्य अंधकारपूर्ण हो जाता है।
हम अतीत के ग्रंथ पड़ेंगे अतीत के महापुरषो का स्मरण करेंगे अतीत की सारी बाते हमारे मन मे बहुत स्वर्ण की होकर बैठ गयी है। बुरा नहीं है कि हम अतीत के महापुरुषों को याद करें लेकिन खतरनाक हो जाता है कि भविष्य की ओर देखने में हमारी स्मृतिया बाधा बन जाए । जब हम कार चलाते हैं तो पीछे भी लाइट रखनी पड़ती हैं लेकिन अगर किसी गाड़ी में पीछे ही लाइट हो और आगे की लाइट हम तोड ही डालें तो फिर दुर्घटना के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं हो सकता। गाड़ी में भी बैक मिरर रखना पड़ता है जिससे पीछे की ओर दिखाई पड़े लेकिन हम ड्राइवर को पीछे की ओर मुंह करके नहीं बैठा सकते। अतीत का उतना ही उपयोग है जितना एक रियर मिरर का गाड़ी चलाने में अगर हम पीछे ही देखते रहे तो दुर्घटना मात्र से और कुछ नहीं होगा।
भारत का दो हजार सालों का इतिहास केवल दुर्घटनाओं का इतिहास रहा हमने गुलामी देखी है, गरीबी दीनता देखी है, बहुत तरीके की परेशानियां देखी है और फिर भी आज हमारे पास भविष्य की कोई योजना नहीं है जिससे हम यह सोच सके की आने वाला कल वर्तमान से बेहतर हो सकेगा। वरण जवान से जवान आदमी से बात किया जाए तो यही सुनने को मिलेगा कि कल और स्थिति बिगड़ जाने का डर है रोज चीजें बिगड़ती चली जाएंगी ऐसी हमारी धारणा है इस धारणा के पीछे कोई कारण है हमने अपने यूटोपिया को पास्ट ओरिएंटेड रखा हुआ है । इस देश में जो हमारा समय का आर्डर है वह कहता है कि सबसे अच्छा युग हो चुका आने वाला समय बुरा होगा सतयुग हो चुका कलयुग हो रहा है और रोज हम अंधकार में उतरते चले जाएंगे जो भी अच्छा था वह बीत चुका राम, कृष्ण, नानक, कबीर, बुद्ध, महावीर जो भी अच्छे लोग हो सकते थे वह हो चुके और भविष्य में कोई अच्छे लोग होने का उपाय नहीं दिखाई देता ।
लेकिन ध्यान रहे अगर भविष्य में हम अच्छे आदमियों को पैदा ना कर पाए तो हमारे अतीत के अच्छे आदमी झूठे मालूम पढ़ने लगेंगे। अगर हम भविष्य में और श्रेष्ठताए ना छु सके तो हमारी अतीत की सारी श्रेष्ठताए काल्पनिक और कहानियां मालूम होने लगेंगी। क्योंकि बेटा बाप का सबूत होता है और अगर बेटे गलत निकल जाए तो अच्छे बाप की बात केवल मन भुलाने वाली बात हो जाती है वह गवाही नहीं रह जाती। भविष्य तय करेगा कि हमने राम को पैदा किया कि नहीं किया अगर हम भविष्य में राम से बेहतर आदमी पैदा कर सकते हैं तो ही हमारे राम सच्चे साबित होंगे और अगर हम राम से बेहतर आदमी पैदा नहीं कर पाए तो दुनिया कहेगी राम केवल कहानी है यह आदमी तुमने कभी पैदा नहीं किया। अगर हम भविष्य में भीख मांगेंगे तो कोई यह मानने के लिए तैयार नहीं होगा कि अतीत में हमारे पास सोने की नगरिया थी और हम अगर भविष्य में गुंडे और बदमाशों को ही पैदा करेंगे तो नानक और बुद्ध पर कितने दिन भरोसा रह जाएगा? ये आदमी हुए थे इसलिए पीछे के अच्छे आदमियों को याद करना केवल काफी नहीं है अगर यह सच में अच्छे आदमी पैदा हुए हैं ऐसा हम दुनिया को कहना चाहते हैं तो हमें भविष्य में इससे बेहतर आदमी रोज पैदा करने होंगे जो रोज ऊंचाइयां चढ़ते हैं वही गवाही दे सकते हैं कि हमने अपने अतीत में बड़ी-बड़ी ऊंचाइयों को छुआ है।
हम जब अतीत की बहुत ज्यादा चर्चा करते हैं तो शक पैदा होता है और जब हम पीछे की लोगों की बहुत ज्यादा गौरव गरिमा की बात करते हैं तो शक पैदा होता है क्योंकि दुनिया हमें देखती है हम दुनिया को कहना चाहते हैं कि हम जगतगुरु थे लेकिन आज दुनिया में एक भी ऐसी चीज नहीं है जिसे हम दूसरों को सिखा सकें। सारी चीजें हमें दूसरों से सीखनी पड़ रही है। यह जगत गुरु की नासमझी की बात बहुत दिन तक टिक नहीं सकेगी। ध्यान रहे जब कोई कौम पास्ट टेंस में बात करने लगती है तो समझ लेना वह बुढी हो चुकी है जब कोई कहे कि मैं अमीर था तो समझ लेना वह गरीब हो चुका है, जब कोई कहने लगे कि मैं ज्ञानी था तब समझ लेना वह ज्ञान से गिरने लगा है। अतीत को देखना उपयोगी हो सकता है लेकिन अतीत को आंख में रखना खतरनाक है आंख में तो भविष्य होना चाहिए आने वाला कल होना चाहिए।
जिस आदमी के अंदर भविष्य को लेकर लगाव है उसकी उम्र जो भी हो वह जवान है जिस आदमी के अंदर भविष्य की कोई कल्पना ही नहीं है बस अतीत का गुणगान है उसकी उम्र कुछ भी हो वह बूढ़ा है ।
भारत में अभी भी जवान आदमी बहुत कम है।