
फादर्स डे विशेष* *कोरोना काल में रायगढ़ के डॉक्टर पिता अपने बच्चों से पहले समाज के लिए* *बच्चों से ऊर्जा लेकर समाज के लिए झोंक रहे हैं रायगढ़ डॉक्टर पिता* *खुद को अलग कर लिया फिर भी पालक की जिम्मेदारी नहीं भूले*
रायगढ़ 20 जून 2021,हर साल जून महीने के तीसरे रविवार को पिता के कर्तव्यों के निर्वहन के लिए उनके प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने के लिए दुनियाभर में फादर्स डे मनाया जाता है। हिंदी में इसे पितृ यानी पिता दिवस कहा जाता है। भारत और अमेरिका समेत कई अन्य देशों में यह जून महीने के तीसरे रविवार को मनाया जाता है। इसका मुख्य मकसद पिता के निःस्वार्थ कर्तव्य और सेवा के लिए लोगों को जागरूक करना और पिता को धन्यवाद देना है। साल 1924 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति कैल्विन कोली ने फादर्स डे मनाने की पहली बार (अधिकारिक) अनुमति दी।
इस बार का फादर्स डे रायगढ़ जिले को उन पिताओं को समर्पित है जो कोविड संक्रमण काल में अपनी जिम्मेदारी को निभाते रहे भले ही वह अपने बच्चों से मिल न पाएं हो पर एक पिता के रूप में पूरे समाज की सेवा भी की है। फादर्स डे पर 4 युवा डॉक्टर्स का अनुभव आपको सोचने पर मजबूर कर देगी कि ऐसा भी होता है।
जिले में कोविड की रोकथाम में युवा डॉक्टर्स ने अपनी पूरी ऊर्जा झोंक दी है। इन्हीं की मेहनत का नतीजा है कि आज रायगढ़ में कोविड पॉजिटिव दर 1 फीसदी के आसपास है और बीते 10 दिनों में इतने ही लोगों की मौत हुई है। शहर में कोरोना के संबंधित आंकड़े देखे तो वह सबसे ज्यादा सुकून देने वाले हैं क्योंकि बीते पखवाड़े में यहां पॉजिटिविटी दहाई के आंकड़े को पार नहीं कर सकी है। शहर में कोरोना से संबंधित कामकाज देखने वाले डिप्टी सिटी प्रोग्राम मैनेजर डॉ. राघवेंद्र बहिदार की कार्यशैली को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है । फादर्स डे पर उनकी बात करना इसलिए खास है कि वह आमजन को यह संदेश देती है कि खुद से पहले समाज है और आपको जो जिम्मेदारी दी गई है उसे पहले पूरा किया जाना चाहिए।
डॉ. राघवेंद्र बताते हैं “नवंबर 2020 में मैं पिता बना। जब से मेरा बेटा कुछ समझने लायक होता तब से कोविड की दूसरी लहर शुरू हो गई। सुबह जब मैं घर से निकलता हूं और रात जब लौटता हूं तब वह सोया रहता है। जब वह पहली बार चलना सीखा तब मैं रायगढ़ में ही था पर उसके पास होकर भी नहीं था। इसी शहर में रहते हुए घर नहीं जा पाना और अपने बच्चे से नहीं मिल पाना शायद आम आदमी इस पीड़ा को नहीं समझ पाए जिस पर बीतती है वह समझता है। वीडियो कॉल के माध्यम से मैं अपने बच्चे को हर दिन बड़ा होता देख रहा हूं। उम्मीद है कि यह समय जल्द बीतेगा और मैं साक्षात अपने बेटे के सामने होउंगा।“
*बच्चों से काफी अटैच हूं पर उनसे बड़ी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर है :डॉ भानू पटेल*
फादर्स डे पर अगर स्वास्थ्यकर्मियों की बात की जाए और डॉक्टर भॉनू पटेल का नाम नहीं लिया जाए तो यह बेमानी होगी। दो बच्चों के पिता जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. भानू पटेल और उनकी टीम की ही मेहनत है कि आज रायगढ़ जिला कोविड टीकाकरण के मामले में प्रदेश में अव्वल है। शनिवार को 50,000 टीके 18 से 44 आयु वर्ग में लगाने का लक्ष्य रखने का माद्दा डॉ. पटेल ही रख सकते हैं। दो बच्चों के पिता अपनी जिम्मेदारी निभाते-निभाते अपने बच्चों को समय देना ही भूल गए। उन्हें हर दिन इस बात का मलाल रहता है लेकिन वह यह भी जानते हैं कि एक न एक दिन उन्हें अपने पिता की जिम्मेदारियों का एहसास होगा।
डॉ. भानू बताते हैं “मैं 3 महीने पहले पॉजिटिव आया था, मेरे पॉजिटिव आने के बाद मेरी 7 साल की बेटी ऐशानी भी पॉजिटिव आई। तनाव था क्योंकि सारा ट्रेंड हम जानते हैं, पॉजिटिव आने के बाद भी जिले में वैक्सीनेशन को लेकर कहीं कोई तकलीफ नहीं हुई। हमनें वैक्सीनेशन को लेकर जो ड्राइव चलाया उसी की बदौलत आज पूरे प्रदेश में एकमात्र रायगढ़ जिला है जो कोविड वैक्सीनेशन के हर वर्ग में प्रदेश में अव्वल है। मेरी बेटी के साथ मेरा सिर्फ देखने भर का संबंध है। मेरा क्लिनिक है जिसे मैं सुबर 6.30 से 9 बजे तक चलाता हूं। सुबह 6 बजे उठ जाता हूं जब ब्रश करने जाता हूं तो बेटी भी मेरे साथ जाती है। मेरा और मेटी बेटी साथ सिर्फ ब्रश करने तक ही होता है। उसके बाद वह अपनी मां के साथ योग और प्राणायाम में व्यस्त रहती है। फिर मैं वैक्सीन को लेकर दिशा निर्देश देने में व्यस्त हो जाता हूं और फिर दफ्तर आ जाता हूं, 10.30 पर कुछ समय के लिए घर आता हूं तो बिटिया की ऑनलाइन क्लास चलती है, 4 साल का बेटा वासु अपने में ही मस्त रहता है। वीकेंड पर हम पूरे स्टाफ के साथ दौर पर रहते हैं। 10.30 के बाद घर से जो निकलता हूं तो रात 12 के बाद घर लौटता हूं और तब तक बच्चे सो जाते हैं। मेरे जीवन में बीते एक साल से बच्चों को सोते ही देख पाना ही लिखा है। मैं अपने बच्चों से काफी अटैच हूं पर मेरी जिम्मेदारी इनसे कहीं बड़ी है बच्चे आज नहीं तो कल मुझे समझ पाएंगे पर उनके बचपने से दूर रहने की टीस मुझे भी है और उन्हें भी है”।
*जिस समय परिजन जागते हैं मैं मरीजों के लिए जागता हूं : डॉ. मनदीप सिंह टुटेजा*
डॉ. मनदीप सिंह टुटेजा जिंदल फोर्टिस अस्पताल में चेस्ट स्पेशलिस्ट हैं। अपने अस्पताल के कोविड वार्ड के वह इंचार्ज है और बीते एक साल से वह हर दिन मरीजों से मुखातिब होते हैं। इसलिए उन्हें अपने ही घर में अलग रहना पड़ता है। 11 साल की उनकी बेटी सतगुन पहले तो उनपर गुस्सा होती थी कि वह उसके पास क्यों नहीं आते लाड़ क्यों नहीं करते। फिर डॉ. मनप्रीत और उनकी डेंटिस्ट पत्नी ने अपनी बेटी को समझाया, अब सतगुन अपने पापा की जिम्मेदारियों को समझती है और पहले जैसी जिद नहीं करती।
डॉ. टुटेजा बताते हैं “ कोविडकाल में ड्यूटी का कोई समय तय नहीं हैं कई बार 14 से 16 घंटे तक काम करना पड़ता है। अगर आप घर भी आ गए हैं तो फोन पर स्टाफ को लाइन अप करना होता है। एक ही घर में रहना और बेटी से मिल न पाना दुख तो देता है पर अब इसकी आदत सी हो गई है। मुझे अपने परिवार वालों से मिलने से पहले अच्छी तरह से नहाना और खुद को सैनेटाइज करना पड़ता है पर यह मेल ज्यादा देर नहीं चलता। अस्पताल भी जाना होता है और जिस समय वह जागते हैं मैं मरीजों के लिए जागता हूं। कोरोना काल में बेटी में अधिक समझ जागृत हो गई है। हम डॉक्टर्स ने घर-परिवार को ऐसे ही रूटीन में व्यवस्थित करना सीख लिया है और परिवार हमारी मदद कर रहे हैं”।
*मुस्कुराने का साहस देती है बेटी : डॉ. पीयूष शुक्ला*
सारंगढ़ के 32 वर्षीय डॉक्टर पीयूष शुक्ला बालाजी मेट्रो हॉस्पिल में हड्डी रोग विशेषज्ञ के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं। उज्जैन से एमबीबीएस और पटियाला से एमएस करने के बाद जयपुर में इस साल के जनवरी तक घुटना व हिप प्रत्यारोपण की ट्रेनिंग ले रहे थे। 15 फरवरी को वह बिटिया महर के पिता बने, जज्चा बच्चा दोनों स्वस्थ हुए तो वह कोरोना की दूसरी लहर को भांपते हुए रायगढ़ आए। चार महीने से वह अपने नवजात बच्ची से मिल नहीं पाए हैं सिर्फ वीडियो कॉल ही जरिये जयपुर में मां के साथ रही बच्चे को देख-सुन रहे हैं। अपनी बच्ची की परवरिश नहीं करने का उन्हें फिलहाल मलाल है वह जल्द ही सबकुछ ठीक होने की बात भी करते हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ पत्नी सुरभि उनके लिए ऊर्जा का केंद्र हैं और मां के साथ बेटी उन्हें इस विपरीत परिस्थिति में मुस्कुराने का साहस देती हैं।
बकौल डॉ. पीयूष “बीते एक साल से कोरोना में ड्यूटी कर रहा हूं। परिजनों के संक्रमित होने के भय से खुद को अलग-थलग किया हूं। पहली बार पिता बना हूं पर इसका एहसास अधूरा ही रहा। हर दिन बड़ी होती बेटी को सिर्फ फोन से ही देखा है। बेटी की एक मुस्कान देखते ही सारी थकान दूर हो जाती है और समाज के प्रति अपना कर्तव्य निभाने की ऊर्जा फिर से मिल जाती है। परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बिठाते यह उम्मीद करता हूं कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा और हम सब साथ होंगे।“