
त्वरित टिप्पणी..धृतराष्ट्र का पुत्रमोह, कोरिया कोरोना का कुरुक्षेत्र…
त्वरित टिप्पणी-लेखक प्रतिष्ठित कवि और साहित्यकार हैं
वैश्विक महामारी के इस गम्भीर समय में प्रशासन का मुँहदेखा रवैया और पढ़े लिखे अनपढों की जमात कोरिया को कोरोना का प्रसाद बांट रहे हैं। इन्ही विषम परिस्थितियों के बीच जिला मुख्यालय में एक धृतराष्ट्र और उनके दुर्योधन ने सारे शहर को कुरुक्षेत्र की स्थिति में ला खड़ा किया है। इस पूरी कहानी का हर एक किरदार आम नागरिकों के कद और काठी से बड़ा नजर आ रहा है और वह केवल अपने आप को कोसने के अलावा कुछ नही कर पा रहा है।
आइए आपको कोरिया जिले के मुख्यालय बैकुंठपुर के ताजा मामले कोरोना से रूबरू कराया जाए। आप उससे पहले यह जान लें की जिला मुख्यालय के समीप रहने वाले गांव के दो गरीब आदमी अपने कागज वर्दीधारी जवानों को नही दिखा पाए। यंहा न्याय का पालन कराने वालों ने अत्यंत सजगता का परिचय देकर धारा 151 के तहत उन्हें हफ्ते भर के लिए लाल दरवाजे के अंदर बन्द कर दिया। परन्तु इससे एक सप्ताह पूर्व विदेश से आए कुछ बड़े व्यापारी अपने प्रभावशाली रुतबे और पँहुच के कारण धारा 188 के सीधे उल्लंघन के बाद भी कॉलर खड़ी कर घूम रहे हैं।
खैर आप आम नागरिक हैं तो सरकार के सारे हुकुम बजा लाइए और मुद्दे की बात सुनिए। मामला आज से 15 दिन पहले का है। एक प्रभावशाली व्यक्ति सभी नियमों को गरीबों के हवाले कर हॉट स्पॉट से आने के बाद भी अपने ओजस्वी पुत्र को चुपचाप घर पर रखे रहे। फिर तीन दिन बाद कुम्भकर्ण के निद्रा से ओत प्रोत प्रशासन की एक अधिकारी सख्त हुईं तो काफी जद्दोजहद के बाद दुर्योधन को पेड क़वारेंटीन किया गया। मामला वँहा भी वैसा ही चलता रहा जैसा की पिकनिक मनाने आए हों। वह प्रभावशाली व्यक्ति हर दिन धृतराष्ट्र की तरह पुत्र को भोजन सेंटर में ले जाकर देते रहे। खबर यह भी उड़ रही है की वह कई बार घर भी आया और गया। फिर हद तो यह हो गई कि धृतराष्ट्र के प्रभाव के कारण उसे बाहर से आने के ठीक 14 दिन में दुर्योधन अपने घर चला गया। चला गया कहना उचित नही होगा बल्कि बाकायदे भेजा गया। बैकुंठपुर का आम नागरिक यह सवाल लिए खड़ा है की आखिर कोरेण्टाइन सेंटर के प्रभारी और प्रशासन के एक आला अफसर को ऐसी क्या हड़बड़ी थी कि बिना स्वास्थ्य विभाग के अनुमति के उस तेजस्वी युवा को बिना रिपोर्ट आए, एक अधिकारी अपने गाड़ी में लादकर घर पंहुचा दिए? बहरहाल कल रिपोर्ट पोसिटिव आई तो आनन फानन में उसे घर से उठा लिया गया।
कहानी यंही खत्म नही हुई है, कानूनों के बोझ से दबे हुए आम नागरिकों ने बताया कि पुत्रमोह में अंधे धृतराष्ट्र और उनका दुर्योधन आस-पास के घरों और किराने की दुकान भी गए। अब आप यदि बैकुंठपुर वासी हैं तो जोर से बोलिए भारत माता की जय।
रुकिए इस कहानी का क्लाइमेक्स अभी भी आना बाकी है। पुत्रमोह में अंधे धृतराष्ट्र और उनका दुर्योधन आस-पास के कुछ घरों और किराने की दुकान भी गए हल्की फुल्की घरेलू पार्टी के लिए सामान लेने। परन्तु आप चिंता बिल्कुल मत करें न्याय के पहरेदार सजगता से डटे हुए हैं कुछ चाहिए तो फोन जरूर करें। भारतीय संविधान में चौथे स्तंभ के स्वयम्भू राष्ट्रीय स्तर के पत्तरकार उनके कसीदे पढ़ने में बड़ी बड़ी ब्रेकिंग देकर निरन्तर व्यस्त हैं। गरीबों की लँगोट लूटने के लिए एफ आई आर करने और सफेदपोशों को घर पँहुच सेवा देने के लिए।
आप चैन से सोएँ या नही यह आपकी और आपके पूरे परिवार की व्यक्तिगत समस्या है। सिर्फ और सिर्फ न्याय अपने कारिन्दों संग जाग रहा है !!