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गुड़ेली चुना पत्थर खदान ..ईआईए में तथ्यों को छुपाया गलत रिर्पोट के आधार पर हो रहा है जनसुनवाई …आसपास 2 खदान  की जगह 38 बताया …प्राकृतिक लात नाला ईआईए रिपोर्ट में गायब कई तथ्यों को छुपाया गया ….पीने के पानी की होती है किल्लत खदान खुलने से बढ़ जाएगा संकट …25 एकड़ से अधिक भूमि पर खुलने वाला है खदान सैकड़ो पेड़ो की लिया जायेगा बलि

गुड़ेली में खुलने वाले चूना पत्थर खदान को लेकर होने वाले जनसुनवाई में विरोध के आसार!

तीन आवेदको का एक क्लस्टर कैसे बना?
लात नाला को नही दर्शाया गया रिपोर्ट में,
गांववासी पीने के पानी के लिये हो जाते है परेशान
25 एकड़ से अधिक भूमि पर खुलने वाला है खदान,
सैकड़ो पेड़ो की लिया जायेगा बल

रायगढ़,।

सारंगढ़ के गुड़ेली में चूना पत्थर खदान को लेकर गांववासियो मे भी आक्रोश बढ़ते जा रहा है। लगभग 25 एकड़ में खुलने वाले खदान को लेकर दिया गया आवेदन मे कई भ्रामक जानकारी से गांव में भी विरोध के स्वर उठ रहे है। 30 अक्टूबर शनिवार को होने वाले जनसुनवाई को लेकर खनिज क्षेत्र गुड़ेली में गर्माहट बढ़ते जा रही है तथा गांववासियो के साथ आसपास के 9 पंचायतो के भी प्रतिनिधि इस खदान को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराने वाले है। वही पाम्पलेट-बैनर के साथ विरोध का स्वर को लोगो का जनसर्मथन मिलने लगा है।

प्रस्तावित हरा-भरा स्थल जहा पर नये खदान खुलना है

सारंगढ़ के प्रसिद्व ग्राम गुड़ेली मे 30 अक्टूबर को सेवा सहकारी समिति गुड़ेली के मैदान पर लोक सुनवाई आयोजित हो रही है। इस लोक सुनवाई मे गुड़ेली में चूना पत्थर के खदान के लिये आवेदन पर पर्यावरण स्वीकृति के लिये यह लोकसुनवाई आयोजित हो रही है। इस लोक सुनवाई मे यह बात तय होगा कि गुड़ेली में खदान को स्वीकृति दिया जाये अथवा नही दिया जाये। इन्ही सवालो का जवाब के लिये जब सारंगढ़ टाईम्स की टीम मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया जो एक बात साफ तौर पर सामने आई कि यहा पर दिया गया रिर्पोट मे कई बातो को गलत दर्शाया गया है। यहा पर प्रस्तावित खदान स्थल पर लगभग 400 से अधिक पेड़ लगे हुए है किन्तु इन पेड़ो के एवज मे कहा पर इनकी भरपाई किया जायेगा? इसकी जानकारी ईएआर रिर्पोट में नही दिया गया है। साथ ही यहा पर प्रसिद्व लातनाला के बारे मे कोई जिक्र नही किया गया है। इन्ही सभी बातो की सूक्ष्म जानकारी जो छनकर सामने आई है उसके अनुसार प्रस्तावित खदान गुड़ेली की रहवासी बस्ती से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। जबकि ईएआर रिर्पोट मे इसे 1.2 किलोमीटर की दूरी बताई गई है। वही महज 500 मीटर की दूरी पर ही सेन्दुरस का स्कूल और आंगनबाड़ी भवन स्थापित है जिसको रिर्पोट में नही दर्शाया गया है। साथ ही सेन्दुरस के सरकारी स्कूल मे पढ़ने वाले विद्यार्थियो का कोई भी जानकारी भी इस ईएआर रिर्पोट मे नही दिया गया है। इसी प्रकार से लात नाला महज 500 मीटर की दूरी पर है। लात नाला गुड़ेली सहित क्षे़त्र के दर्जन भर गांवो का लाईफ-लाईन है तथा उसे प्रदूषित करने से जैवविविधता को गहरा प्रभाव पड़ेगा। साथ ही नेशनल हाईवे 153 को नही दर्शाया गया है जबकि मात्र 700 मीटर की दूरी पर नेशनल हाईवे गुजर रही है। इनका भी जिक्र ईएआर रिर्पोट मे नही किया गया है। वही खदान की स्वीकृति मिलने पर 4 हजार से अधिक पेड़ो को लगाने की जिक्र ईएआर रिर्पोट में किया गया है किन्तु जो पेड़ खदान के लिये बलिदान मे खत्म हो रहे है उनकी संख्या भी लगभग 400 है किन्तु इन पेड़ो के लिये कोई भी व्यवस्था नही किया गया है अथवा इनको कोई महत्व नही दिया गया है।

खदानो में विस्फोट से किया जा रहा गहरा गड्ढ़ा

सबसे बड़ी चिंता भू-जल के स्तर मे गिरावट की?
गुड़ेली ग्राम में सबसे बड़ी चिंता गिरते हुए जलस्तर की हो रही है। पर्यावरण प्रदूषण के कारण से लगातार यहा पर भू-जल का स्तर गिरते जा रहा है किन्तु किसी भी प्रकार से इनके संरक्षण के लिये कोई प्रयास नही किया गया है। वही खोदे जा चुके खदानो में फ्लाई एश का डंप करने से भू-जल में प्रदूषण का स्तर और भी बढ़ता जा रहा है। वही इस बार गर्मी माह मे मार्च में ही पाने का पानी के लिये त्राहि-त्राहि मचा हुआ था किन्तु इसके संरक्षण के लिये कोई भी आगे नही आया। वही अब नई खदान खुलने से भू-जल का स्तर और भी ज्यादा पर्यावरण प्रभाव पड़ेगा जिसके कारण से गांव में पीने का पानी के लिये त्राहि-त्राहि मच सकता है। इसी कारण से गांववासी नये खदानो का विरोध कर रहे है।

बदहाल गलियां जहा नाली नही सड़क पर बहती है गन्दा पानी

अवैध विस्फोटो से दहल जाता है गुड़ेली?
वर्तमान मे गुड़ेली में लगभग 40 खदान वैध रुप से संचालित है तथा कुछ खदान अवैध रुप से संचालित है, इन खदानो में प्रतिदिन होने वाले भयानक विस्फोट से गुड़ेली गांव दहल उठता है। नये खदान खोलने से बेराजगारी की बाते तो हो रही है किन्तु चूना पत्थर का खदान मे मानव श्रमिको का काम लगभग खत्म हो गया है। चूना पत्थर के खदानो में बड़ी मशीने तथा अवैध विस्फोट और जेसीबी, लोडर, हाईवा और ट्र्ेक्टर का ही काम होता है यहा पर नाम मा़त्र का मानव श्रमिको को कार्य मिलेगा। ऐसे मे सिर्फ प्रदूषण के लिये ही नये खदानो को स्वीकृति दिये जाने से गांववासियो मे आक्रोश का माहौल है।

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