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चमगादड़ का सूप बदलेगा… न ये रूप बदलेगा..हो मनुज.. दानवता छोडछाड़ दीजिए…कोरिया साहित्य एवं कला परिषद व हिंदी साहित्य चेतना मंच द्वारा बसन्त साहित्य उत्सव का आयोजन…

चमगादड़ का सूप बदलेगा… न ये रूप बदलेगा..हो मनुज.. दानवता छोडछाड़ दीजिए…कोरिया साहित्य एवं कला परिषद व हिंदी साहित्य चेतना मंच द्वारा बसन्त साहित्य उत्सव का आयोजन…

मनेन्द्रगढ़ से ध्रुव द्विवेदी
कोरिया साहित्य एवं कला परिषद व हिन्दी  साहित्य चेतना के तत्वावधान में बसंत साहित्य उत्सव का आयोजन किया गया।इस अवसर पर क्षेत्र के प्रबुद्ध साहित्यकारों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का वाचन किया।सिविल लाइन मनेन्द्रगढ़ में रितेश श्रीवास्तव के आवास में आयोजित गोष्ठी की शुरुआत माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलन कर किया गया।
सर्वप्रथम गोष्ठी में मौजूद  विश्रामपुर से आई साहित्यकार  प्रकृति कश्यप एवं  राजेश कश्यप का  कोरिया साहित्य कला परिषद एवं हिंदी साहित्य चेतना के पदाधिकारियों द्वारा  पुष्प भेंट कर स्वागत किया गया।  इसी कड़ी में  क्षेत्र के वरिष्ठ साहित्यकार  गंगा प्रसाद मिश्र ने मां सरस्वती की वंदना से आयोजन की शुरुआत की। इस अवसर पर  साहित्यकार  सतीश उपाध्याय ने  अपनी  लेखनी के माध्यम से  समाज की विसंगतियों पर  करारा प्रहार किया। उन्होंने  उड़ते हैं खारे सैलाब  छोड़ देते हैं  अखबारों के लिए बजाती खबरें सुना कर  लोगों का ध्यान आकर्षित किया।  इसी कड़ी में  साहित्यकार  नारायण तिवारी ने  बढ़ती महंगाई पर  अपनी प्रस्तुति दी उन्होंने  प्याज पर कविता सुना कर  लोगों को काफी गुदगुदाया ।गरीब की थाली से प्याज अलविदा हो गई,फाइव स्टार होटल पर जाकर फिदा हो गई। साहित्यकार  गंगा प्रसाद मिश्र ने  देशभक्ति पर अपनी  भावपूर्ण कविता  प्रस्तुत की।  चोरी-चोरी सीमा पर घुसपैठ कराना ठीक नहीं। सोए हुए शेर को पत्थर मार जगाना ठीक नहीं सुना कर  तालियां बटोरी।
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  कार्टूनिस्ट व व्यंग्यकार जगदीश पाठक ने  समाज की विसंगतियों पर  अपनी  कटाक्ष करती हुई  कविता प्रस्तुत की। उन्होंने कहां की किस प्रकार से सामाजिक रिश्तो में  बदलाव आ रहा है और लोग  अपनी सभ्यता को भूलते जा रहे हैं ।उन्होंने कहा कि मेरी पत्नी के लिए श्रीफल नारियल होता था,वह उसे किराने की दुकान में दे आती थी। वीर रस के  युवा कवि सशक्त लेखनी के हस्ताक्षर  गौरव अग्रवाल  कहां कि मेरी कोशिशों को मौका मिले मेरे सब्र ही  का सिला मिले । मेरी एक दुआ रब मान ले ,जो मेरा है वह मुझे आ मिले, सुनाकर  कवि गोष्ठी को नया आयाम दिया।  युवा कवि रामचंद्र अग्रवाल ने श्री राम मंदिर पर आए फैसले पर अपनी  प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि  भारतीय जन मंच का यह सबसे बड़ा सम्मान है। धर्म सनातन विजय पताका लहराए आसमान है । सुना कर  देश की सर्व धर्म  सद्भावना का परिचय दिया ।व्यंग कार  विजय कुमार गुप्ता ने अपने व्यंग्य के माध्यम से  वाहवाही बटोरी। उन्होंने कहा कि एक अधिकारी ने हम से भीख मांगकर हमारा सम्मान बढ़ाया। बोला गरीब को दे दो बाबूजी सोलह आने। हमने कहा सिर्फ 16 आने। यानी कि एक रु ,अरे इस जमाने में सोलह आने  के क्या मायने  ।क्षेत्र के वरिष्ठ साहित्यकार  वीरेंद्र श्रीवास्तव ने  बसंत पर  अपनी बात कुछ इस तरह रखी की  पुराने वस्त्रों को समेट ,नए कपड़ों के सेट,  भेंट करने का सिलसिला यूं ही कुछ प्रण करके निकला है  बसंत का काफिला । सुनाकर लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया ।वहीं उन्होंने देश के  प्रतिष्ठित साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला पर  अपने  विचार रखे।  समाज की विसंगतियों पर  हमेशा अपनी बेबाकी से बात रखने वाले साहित्यकार संतोष जैन ने कहा मैं धीरे-धीरे बढ़ता हूं ,मैं धीरे-धीरे घटता हूं इसमें मेरा क्या कसूर ।ना कहीं पूर्णिमा है ना कहीं अमावस है। युवा कवि रितेश कुमार श्रीवास्तव ने देशभक्ति पूरक रखना का वाचन करते हुए अपनी बात रखी। देश के वीर उठो मेरे रणधीर उठो मां की सेवा को चलो, सुना कर  कवि गोष्ठी को नई ऊंचाइयां दी। विश्रामपुर से आई साहित्यकार प्रकृति कश्यप ने वसंत पर अपनी भावपूर्ण कविता सुनाकर वाहवाही बटोरी।उन्होंने वसंत की प्रासंगिकता पर अपनी बेबाक टिप्पड़ी से आयोजन को सार्थकता प्रदान की।क्षेत्र की प्रतिष्ठित साहित्यकार अनामिका चक्रवर्ती ने समाज मे महिलाओं की दशा पर अपनी बेबाक टिप्पणी की ।इसके साथ ही उन्होंने वसन्त पर अपनी बात रखी, प्रेम के होठों पर जब वसंत अपना चुम्बन रखता है।प्रेम की सारी पीड़ाएं वासन्ती हो जाती हैं।जब मन की क्यारी में पीली सरसों खिल जाती है,प्रेम के आलिंगन में वासन्ती बयार घुल जाती है।साहित्यकार मृत्युंजय सोनी ने छोटी मगर सशक्त रचनाओं से लोगो को अपनी ओर आकर्षित किया।उन्होंने कहा कि भूलना नहीं मुझे मतलबियों की तरह,पर ऐसे याद भी न करना,जैसे में याद करता हूँ। सोते,जागते,खाते पीते,यहां तक कि प्राथना के समय भी।कार्यक्रम का संचालन कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता रामचरित द्विवेदी ने एक ओर वसन्त पर गीत सुनाकर वाहवाही बटोरी तो वहीं उन्होंने करोना वायरस पर अपनी बात रखी कि प्रकृति ने जो बनाया भोजन के वास्ते।उसे खाइए,बाकी छोड़छाड़ दीजिए।चमगादड़ का सूप बदलेगा न ये रूप, हो मनुज दानवता छोडछाड़ दीजिए।इस मौके पर विश्रामपुर से आये राजेश कश्यप,मनेन्द्रगढ़ के गीतकार नरोत्तम शर्मा व शैलेश जैन ने गीतों के माध्यम से आयोजन को नई उचाइयां दी।इस अवसर पर राजकुमार श्रीवास्तव, अधिवक्ता रोमेश श्रीवास्तव, धनपत पतवार समेत क्षेत्र के सुधि जन काफी संख्या में मौजूद रहे।
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