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मॉडल गौठान इतना सुंदर कि पड़ोसी गांव के लोग भी देख जाते हैं 7 एकड़ जमीन में लगेगी नैपियर घास, तीन एकड़ में बनेगी बाड़ी

दुर्ग। धमधा ब्लाक में ग्राम चेटुवा में बन रहा माडल ब्लाक पूर्णता की ओर है। यहां 400 पशुओं के लिए डेकेयर की व्यवस्था होगी। लगभग 3 एकड़ क्षेत्र में माडल गौठान बनाया गया है। यहां पशुओं के रहने के लिए शेड, पीने के पानी के लिए कोटना, सोलर बोरवेल आदि की व्यवस्था करा दी गई है। घुरूवा के लिए नाडेप टैंक आदि जरूरी स्ट्रक्चर का निर्माण कर दिया गया है। यहां मौजूद ग्रामीणों ने बताया कि पड़ोसी गांवों से जब लोग गुजरते हैं तो यहां आकर गौठान का निरीक्षण जरूर करते हैं। गौठान के चारों ओर पौधरोपण के लिए जगह छोड़ दी गई है। दो-तीन साल में जब ये पौधे वृक्ष का रूप ले लेंगे तो गौठान और भी सुंदर हो जाएगा। गौठान में काम कर रहे लोगों ने बताया कि यह तीन एकड़ जगह पूरे गांव के लिए कामधेनु की तरह साबित होगी। एक ग्रामीण महिला ने गौठान कैंपस में बनी एक गाय की मूर्ति की ओर इशारा करते हुए बताया कि इही कामधेनु हे, गांव मन में चारागाह जमीन कम हो जथे तव गरूवा मन हा एती ओती ढिलात रहिथें तव फसल घलो खराब हो जथे, अब एक जगह माड़ के बैठहिं, उहें गोबर, उहें खाद, का चिंता हे, सब सुघ्घर हो जहि। जनपद पंचायत सीईओ धमधा श्रीमती अनिता जैन ने बताया कि 10 एकड़ जमीन में से 7 एकड़ जमीन में चारागाह के लिए फेंसिंग एवं जुताई हो चुकी है। बोर का इंतजाम भी हो चुका है। यहां नैपियर और बरसीम जैसी अच्छी प्रजाति की घास लगाई जाएगी। तीन एकड़ भूमि बाड़ी के लिए रखी गई है और इसके लिए स्वसहायता समूहों का चयन कर लिया गया है। गौठान समिति पूरी सक्रियता से काम कर रही है और सामूहिक भागीदारी से कार्य हो रहा है। ग्रामीणों में काफी उत्साह है। गांव के किसानों ने बताया कि माडल गौठान से हम पशुधन का बेहतर तरीके से उपयोग कर पाएंगे। एक ही जगह पर सारे मवेशी होने के कारण गोबर खाद हमें प्रचुर मात्रा में मिल पाएगा। यहां एक ही जगह पर पशुओं के होने के कारण इनकी चिकित्सकीय देखभाल और नस्ल सुधार जैसे कार्य भी बेहतर तरीके से हो पायेंगे।
बुजुर्ग किसानों ने बताया परंपरा की वापसी-
गांव के बुजुर्गों ने बताया कि पहले गोबर खाद ही उपयोग करते थे, इससे भूमि की ऊर्वरा शक्ति भी बनी रहती थी। धान की सुगंध दूर तक आती थी। कहीं सुगंधित धान बनता था तो पूरे गांव को पता चल जाता था। फ र्टिलाइजर के बढ़ते उपयोग से कम हो गया। गांव में बाड़ी कब खत्म होती गई, पता ही नहीं चला। बुजुर्गों ने बताया कि नरूवा-गरूवा-घुरूवा-बाड़ी हा हमर परंपरा हवय, ये हा वापस होवत हे, सब मिलके काम करथे तव एका घलो बढ़थे, काबर कि एखर से एक आदमी के तरक्की नइ सबे झन के तरक्की के व्यवस्था होवत हे।

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