मास्टर माइंड ने अटकाया मास्टर प्लान!
– सरकार बदली, चेहरे बदले पर नहीं बदली अफसरों की नीयत
– 34 करोड़ खर्चने के बाद भी कागजों से बाहर नहीं निकला दुर्ग जिले का मास्टर प्लान
– दुर्ग व राजधानी के अफसरों की अवैध कमाई का बना जरिया
दुर्ग। अक्सर देखा गया है किसी काम को करने में यदि सरकार की नीयत साफ हो और अफसरों की नीयत में खोट हो तो काम पूरा नहीं हो पाता। दुर्ग जिले के मास्टर प्लान के साथ भी यही हो रहा है। 2014 से लेकर अब तक 5 वर्ष बीत गए। इस दौरान दो बार सर्वे हुए और इन सर्वे में 17-17 करोड़ रूपए का भारी-भरकम खर्च भी कर दिया गया, किन्तु यह विडंबना ही है कि अफसरों की मनमानी के चलते मास्टर प्लान अस्तित्व में नहीं आ पाया। वजह साफ है- मास्टर प्लान लागू हो गया तो अवैध कमाई बंद हो जाएगी। इसीलिए दुर्ग से लेकर राजधानी रायपुर तक के अफसरों ने मिलीभगत कर ऐसा व्यूह रचा कि मास्टर प्लान की हत्या हो गई।
2014 में जब मास्टर प्लान के लिए काम शुरू हुआ तब किसी ने नहीं सोचा था कि पूरे 5 वर्षों बाद भी इस प्लान की प्रसव-वेदना बरकरार रहेगी। किन्तु नगर तथा ग्राम निवेश विभाग के निकम्मेपन ने इस पूरे प्लान को अटकाए रखने का ऐसा कुचक्र चला कि पीडि़तों का दम फूलने लगा। हालात यह है कि दुर्ग जिले के इस मास्टर प्लान का आज तक अंतिम प्रकाशन नहीं हो पाया है। लम्बे समय से नगर तथा ग्राम निवेश विभाग में कुंडली मारकर बैठे अफसर दरअसल चाहते ही नहीं कि यह प्लान लागू हो। क्योंकि यदि ऐसा हो गया तो उनकी अवैध कमाई बंद हो जाएगी।
धारा 16 बनी हथियार
वर्तमान में अफसरों के लिए धारा 16 बड़ा हथियार बनी हुई है। इसी धारा के जरिए स्थानीय अफसर फाइलों को रायपुर भेजते हैं और इसी के जरिए खेल होता है। जिन फाइलों का लैंड यूज बदलने के लिए स्थानीय स्तर पर सेटिंग हो जाती है, उन फाइलों का निपटारा रायपुर में कर दिया जाता है। नई अनुज्ञा प्रदान कर दी जाती है और ले आउट को भी अप्रूवल मिल जाता है। गौरतलब है कि धारा 16 के तहत नगर एवं ग्राम निवेश विभाग संबंधित फाइल को अपनी अनुशंसा के साथ इंद्रावती भवन स्थित मंत्रालय के मुख्य दफ्तर में भिजवा देते हैं। इस दौरान यदि सेटिंग हुई तो मुख्य दफ्तर से लैंड यूज बदल दिया जाता है, अन्यथा मामला पेंडिंग रहता है।
2 बार हो चुका है रिजेक्ट
दुर्ग जिले के मास्टर प्लान के लिए जब काम शुरू हुआ तो काफी हो-हल्ला मचा था। पहले और दूसरे दोनों ही सर्वे के बाद नगर एवं ग्राम निवेश विभाग में दावा-आपत्ति करने वालों की कतारें लग गई। दरअसल, इस सर्वे के नाम पर भी विभाग ने लम्बा खेल खेला था। कृषि भूमि का लैंड यूज बदलकर व्यवसायिक कर दिया गया तो व्यवसायिक को कृषिभूमि बता दिया गया। तब आरोप लगे कि विभाग ने भू-माफियाओं के इशारे पर सर्वे रिपोर्ट तैयार करवाई है। पहली बार जब विरोध के स्वर ज्यादा मुखरित हुए तो दोबारा सर्वे करवाया गया, किन्तु एक बार फिर हालात वही रहे। दरअसल, मास्टर प्लान अफसरों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन गया। कोई भी अफसर यह नहीं चाहता था कि मास्टर प्लान को लागू कर इस मुर्गी को ही खत्म कर दिया जाए। इसलिए 5 वर्षों बाद भी मास्टर प्लान रूपी मुर्गी के जरिए सोने का अंडा बटोरा जा रहा है।
आधा सैकड़ा मामले निपटे
जानकारों की मानें तो अब तक लैंड यूज बदलने के आधा सैकड़ा से ज्यादा मामलों का निपटारा किया गया है। ये वे लोग हैं, जिन्होंने अपने मुताबिक काम करवाने के लिए जिले से लेकर रायपुर तक के अफसरों की मुट्ठी गरम की। अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक, अब भी बड़ी संख्या में मामलों से संबंधित फाइलें लंबित पड़ी है। पैसे और पहुंच वालों के काम हो रहे हैं, जबकि बाकी लोग पिस रहे हैं। शायद इसीलिए यह मांग ते•ाी पकड़ रही है कि ऐसे अफसरों का तबादला कर मास्टर प्लान पर तत्काल फैसला किया जाए। जब मास्टर प्लान के लिए काम शुरू हुआ तब प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, किन्तु अब भूपेश बघेल की अगुवाई वाली कांग्रेस सत्ता में है। दुर्ग जिला मुख्यमंत्री बघेल का गृहजिला भी है। आश्चर्य है कि बावजूद इसके अफसरों की मनमानी कम होने का नाम नहीं ले रही।
नायर-डूमरे का खेल!
नगर एवं ग्राम निवेश विभाग के संयुक्त निदेशक विनीत नायर व वरिष्ठ मान चित्रकार राजेश डूमरे पर कई पीडि़तों ने उंगलियां उठाई है। इन दोनों अफसरों के बारे में कहा जाता है कि वे मिल-जुलकर खेल खेल रहे हैं। दोनों अफसर ऐसा ताना-बाना बुनते हैं कि पीडि़त व्यक्ति फंसकर रह जाता है। लैंडयूज बदलवाने के चक्कर में पीडि़त पहले ही परेशान रहता है। इसी का भरपूर फायदा अफसर उठाते हैं। जानकारों के मुताबिक, जब किसी व्यक्ति का आवेदन इस विभाग में पहुंचता है तो पीडि़त से सेटिंग की जाती है और फिर धारा 16 के नाम पर आवेदन को अपनी अनुशंसा के साथ रायपुर भेज दिया जाता है। इंद्रावती भवन रायपुर स्थित दफ्तर में भी 3 अफसरों की भूमिका बेहद संदिग्ध बताई जाती है। ये तीन अफसर स्थानीय सेटिंग के आधार पर आवेदनों को अप्रूवल देते हैं। अप्रूवल के बाद ले आउट बदल दिया जाता है। जानकारों का दावा है कि एक एकड़ का लैंड यूज बदलने पर लाखों का खेल चलता है।
पीएमओ में हो चुकी है शिकायत
नगर एवं ग्राम निवेश विभाग के दो अफसरों की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय तक हुई है। ये दो अफसर है संयुक्त निदेशक विनीत नायर व वरिष्ठ मानचित्रकार राजेश डूमरे। पीएमओ को अंग्रेजी में की गई शिकायत में पीडि़त पक्ष ने इन अफसरों पर अनुचित तरीके से फाइलों को अस्वीकार करने समेत कई गम्भीर आरोप लगाए हैं। हालिया की गई इस शिकायत पर पीएमओ ने फिलहाल संज्ञान इसलिए नहीं लिया क्योंकि नई सरकार के गठन की प्रक्रिया चल रही थी।