
एनटीपीसी लारा प्रभावितों को कब मिलेगा न्याय …..प्रभावितों के नाम पर फर्जीवाड़ा जांच हो तो फर्जीवाड़े की फाइल में एक पन्ना और जुड़ेगा ….? हमने पूर्व की घटनाओं से सबक नहीं लिया …
रायगढ़ । एनटीपीसी लारा अपने स्थापना के दौर से ही सुर्खियों में आ गई और हर बार स्थानीय प्रभावित पिछली घटनाओं से सबक नहीं लिया। प्रभावितों को नौकरी के नाम पर हर बार कोई न कोई पेंच लगाकर आमरण अनशन की नौबत आ जाती है और अपने हक की लड़ाई में अस्पताल और जेल तक कि हवा खानी पड़ जाती है। जैसा कि एक बार फिर से शेष बचे भुविस्थापितों को आमरण अनशन पर बैठने को मजबूर कर दिया इतना ही जब जान पर बन आई तो अस्पताल पहुंचाना पड़ा।
प्रभावितों का आरोप है कि भले ही बाहर से कर्मचारी आयात कर लेंगे लेकिन स्थानीय बेरोजगारों को काम नहीं देंगे आखिर ऐसा भेदभाव क्यों और अगर ऐसी नीति है तो भी ऐसी नीति की जरूरत नहीं जिससे भुविस्थापितों को आजीविका का साधन मुहैया न करा सके। एनटीपीसी प्रबन्धन का रवैया प्रभावितों के प्रति हमेशा अड़ियल रहा है। एक तरफ कहती है कि एक परिवार के एक सदस्य को नौकरी देंगे लेकिन यहां बैठे आंदोलन कारियों का दावा है कि हाल ही में 20 लोकल लोगों में भर्ती में नाम पर जमकर छलावा किया गया है इसमे जांजगीर चाम्पा, डभरा के लोग है जबकि झिलगीटार और एक दूसरे गांव के प्रभावित परिवार के नाम पर भर्ती की गई है और दो एक ही परिवार के हैं अनशन कारी हरिकिशन पटेल की मांग है कि हाल ही स्थानीय प्रभावित 20 लोगों की नियुक्ति की जांच हो तो बात सामने आ जायेगी। उसने बताया कि किस तरह से एक बार फिर से अड़ंगा डाल कर 10 युवाओ को एक बार फिर आमरण अनशन पर बैठने को मजबूर कर दिया है। प्रभावितो में योग्यता धारी पीड़ितों का कहना है कि उसी काम को बाहर से लोगो को बुला कर काम दियाजाता है लेकिन जब स्थानीयों की बारी आती है तो उनके साथ दोहरा मापदंड अपनाया जाता है। यदि पीड़ित का आरोप सही है तो 20 प्रभावितों की भर्ती के नाम पर भर्ती पर जांच होनी चाहिए और प्रभावितों को न्याय मिलनी चाहिए। फिलहाल भर्ती घोटाले की बात में सच्चाई कितनी है यह तो नहीं जानते पर विस्थापित परिवारों को न्याय मिलनी चाहिए जिसके वे हकदार हैं।