♦इस खबर को आगे शेयर जरूर करें ♦

सारडा एनर्जी एंड मिनरल्स की पर्यावरणीय स्वीकृति के लिए दावा आपत्ति और ईआईए एक धोखा…… विस्तार के लिए दस्तावेज लब्बो लुआब सच्चाई कोसो दूर……जनसुनवाई के बजाय दफ्तर में मंगाई जा रही दावा आपत्ति सेटिंग का पूरा खेल…ईआइए से कोल वाशरी गायब इतना ही नहीं मुड़ागांव फ्लोराइड प्रभावित गांव भी है गायब … फॉरेस्ट लैंड को लेकर किया है गुमराह

रायगढ़। जिले में अंधाधुंध अनियमित तरीके से पूंजीपतियों के इशारे पर उद्योगों का लगातार विस्तार किया जा रहा है। हाल ही में सारडा एनर्जी एंड मिनरल्स माइंस विस्तार के लिए अनुमति दिलाने की प्रक्रिया अब तक की सारी जनसुनवाईयों से जुदा है। विस्तार के लिए जन सुनवाई नहीं बल्कि सिर्फ दावा आपत्ति मंगा कर अनुमति देने का षड्यंत्र रचा गया है।
सारडा एनर्जी एंड मिनरल्स कोल माइंस विस्तार के लिए जो आईआईए रिपोर्ट जमा कराई गई है वह ईआईए रिपोर्ट अक्टूबर 2021 की 3 साल से भी ज्यादा पुरानी है। इसी पुरानी ईआईए रिपोर्ट को सितंबर 2024 में जमा किया गया है। नियम यह है कि ईआईए रिपोर्ट जमा करने के बाद 14 सितम्बर 2006 की अधिसूचना के अनुसार आवेदन के 45 दिवस के अंदर प्रक्रिया हो जाना चाहिए। भ्रम ये की तीन साल पुराने आईआईए रिपोर्ट को सितंबर 2024 को आवेदन तारीख बताने की कोशिश की गई है। भ्रम इतना ही नहीं, मेसर्स सराडा एनर्जी एंड मिनरल्स के द्वारा 22 अक्टूबर 2023 को आवेदन करना बता कर अनुवृत्ति पत्राचार 29 जनवरी 24 की तारीख बताया जाना भी जल जंगल जमीन से जुड़े लोगों को समझ नहीं आया। कुल मिलाकर देखा जाए तो बड़े ही शातिर तरीके से गोलमोल शब्दों का उपयोग कर पूरी ईआईए रिपोर्ट में तथ्यों का उल्लेख किया गया है।

ईआईए रिपोर्ट में यह स्पष्ट उल्लेख किया गया है की परियोजना के 10 किमी के दायरे में कोई भी संवेदनशील क्षेत्र और घोषित जैव विविधता क्षेत्र नहीं है जबकि वास्तविकता में मोरगा पहाड़ जहां जहां मोरगा पाठ में कुल देवी देवता विराजमान है और गोंड राज परिवार की कुलदेवी भी कहलाई जाति है इतना ही नहीं सिलौट पहाड़ और तोलगे पहाड़ और केलो नदी 7 से 10 किमी की परिधि में आता है।

ईआईए रिपोर्ट में पब्लिक हियरिंग एंड सोशल इंपैक्ट जैसे मुद्दों को दरकिनार कर राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण छत्तीसगढ़ में जिस ईआईए रिपोर्ट के आधार विस्तार के लिए बिना जन सुनवाई ये सीधे विस्तार के लिए पर्यावरण संरक्षण मंडल रायगढ़ के दफ्तर में दावा आपत्ति मंगाया जा रहा है और इसी के आधार पर इन्हें पर्यावरणीय स्वीकृति हासिल कर सामाजिक प्रभाव को दरकिनार कर सराडा एनर्जी को क्लीन चिट देकर विस्तार के लिए कागजी कार्रवाई पूरी सारे नियम कानून को धता बताकर पूंजीपतियो के हाथो पूरी जैव विविधता सौंप देना चाहते हैं।

हकीकत एक ये भी है /-

ईआईए रिपोर्ट में फॉरेस्ट लैंड शून्य बताया गया है जबकि हकीकत कुछ अलग ही है । प्रभावित गांव करवाही, खमहरिया, सरईटोला, ढोलनारा और बजरमुड़ा है। सिलोट पहाड़ करवाही और बजरमुड़ा से लगा हुआ है मोरगा पहाड़ जो जैव संसाधनों से भरा पूरा गोंड सामाराज्य की कुलदेवी भी इसी क्षेत्र में विराजमान है। यहां के स्थानीय समुदाय को वन भूमि आवंटित है वह फोरेस्ट लैंड है और इसी आधार पर समुदाय को फॉरेस्ट एक्ट के तहत प्राप्त भूमि और जंगल माइंस प्रभावित है। फोरेस्ट लैंड जीरो बताना भी अपने आप में हास्यास्पद है। ईआईए रिपोर्ट में गांव के पेसा कानून के तहत गांव की ग्राम सभा की कॉपी का न तो कहीं उल्लेख है और न ही इसमें शामिल किया गया है। समाजिक आंकलन की जानकारी की बात दूर है।

ईआईए रिपोर्ट में फ्लोराइड प्रभावित गांव भी गायब /-

सराडा एनर्जी एंड मिनरल्स के कोल माइंस के दायरे में वह गांव भी प्रभावित है जो फ्लोराइड प्रभावित है और कुबड़ेपन की बीमारी के लिए जाना जाता है मुड़ागांव सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम है। खास बात ये है की ईआईए रिपर्ट में मुड़ागांव की तीन बस्तियों का भी कहीं उल्लेख नहीं है।

फोरेस्ट राइट एक्ट का खुला उल्लंघन /-

मुड़ागांव, सरईटोला को सामुदायिक वनाधिकार एवं सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्रक प्राप्त है।
चूंकि यह क्षेत्र अनुसूची पेसा 5 के अंतर्गत आता है इसके अनुसार सारडा प्रबंधन के द्वारा फॉरेस्ट राइट एक्ट के तहत प्रभावित ग्रामीणों को सामूहिक वनाधिकार पट्टा एवं सामुदायिक वन संरक्षण अधिकार पत्रक का समायोजन किया ही नहीं गया है। जबकि इस नियम के तहत जंगल के बदले प्रभावितों को कैंपा मद से जंगल वाली ही भूमि मिलनी चाहिए जो की कहीं किया ही नहीं गया है और न ही आईआईए रिपोर्ट में इस तरह की किसी बातों का उल्लेख किया गया है। तो फिर ऐसे में ईआईए रिपोर्ट में फॉरेस्ट भूमि जीरो कैसे दर्शाया गया है यह कैसे संभव हो सकता है। यह आसानी से समझा जा सकता है।

ईआइए में कोलवाशारी का नाम नहीं होना संदेहास्पद/-

ईआईए रिपोर्ट में सारडा एनर्जी की कोल वाशरी जो स्थापित है उसका कही कोई उल्लेख नहीं किया गया है जबकि पूर्ण रूप से कोल माइंस के दायरे में ही कोल वाशरी स्थापित है। कोल वाशरी की जानकारी भी नहीं देना ईआईए रिपोर्ट के झूठे होने की गवाही देता है।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

Please Share This News By Pressing Whatsapp Button



स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

जवाब जरूर दे 

[poll]

Related Articles

Back to top button
Don`t copy text!
Close