♦इस खबर को आगे शेयर जरूर करें ♦

नगरीय निकाय चुनावों में हार के डर से कांग्रेस ने निर्वाचन प्रकिया में किया परिवर्तन-केशरवानी… विधानसभा में 68 सीट जीतने वाली कांग्रेस लोकसभा में 66 जगह से पिछड़ी..

मनेन्द्रगढ़ से ध्रुव द्विवेदी
हार के डर से नगरीय निकाय निर्वाचन प्रक्रिया  में  परिवर्तन के निर्णय विधान की कसौटी पर खरे नहीं हैं। उक्ताशय का बयान जारी करते हुए भाजपा के प्रदेश कार्य समिति सदस्य अनिल केशरवानी ने कहा है कि लगभग 1 वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी और कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को यह गुमान हुआ कि यह जीत उनकी रीति नीति और लोकप्रियता का परिणाम है और यह गुमान बहुत जल्द काफूर हो गया जब लोकसभा के चुनाव हुए और 68 सीट  जीतने वाली कांग्रेस 90 में से 66 विधानसभा में पिछड़ गई ।उसके बाद इनकी समझ में ना आया कि आने वाले समय में जो नगरी निकाय, पंचायती राज के चुनाव में कांग्रेस का भविष्य क्या होगा ।
 श्री केशरवानी ने अपने बयान में कहा है कि लोकसभा चुनाव के आधार पर जनता ने यही परिणाम दिया तो हाईकमान को जवाब देना मुश्किल जो जाएगा। नगर निगम ,नगर पालिका और नगर पंचायतों में जो उनके सूत्र थे, उसके आधार पर उनको अपनी हार स्पष्ट दिखलाई पड़ी और हार के भय के कारण उन्होंने जिस दमदारी  के साथ यह कहा था कि  महापौर और नगर पालिका अध्यक्ष को जनता चुनेगी, मगर महज 2 महीने में ही उस बयान से उस संकल्प से पलटी मार गए। अब कोशिशें चल रही हैं किसी तरह से कांग्रेस की जीत  को साबित किया जा सके। इसलिए निर्वाचन की प्रक्रिया में परिवर्तन किया जा रहा है ।
स्थानीय निकाय के चुनाव की आधी प्रक्रिया और पार्षदों व अध्यक्ष महापौर के पदों का आरक्षण होने के बाद पार्टी हाईकमान के आदेश और निर्देश जो इनकी हार का संकेत दे रहे थे । इससे वे मजबूर हो गए निर्वाचन की प्रक्रिया में परिवर्तन करें परंतु असमंजस यह है कि पार्षदों के साथ साथ महापौर, अध्यक्ष का आरक्षण भी हो गया। 
यदि निर्वाचन की प्रक्रिया के बाद आरक्षित वर्ग हेतु बहुमत प्राप्त पार्षद  दल के पास में आरक्षित वर्ग का पार्षद नहीं है तो क्या उसे विपक्षी पार्षद को अध्यक्ष निर्वाचित करना पड़ेगा। यह दुविधा कांग्रेस के लिए भारी पड़ रही है और ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस पार्टी और प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कहीं अपने कदम वापस न खींचने पड़े। या तो महापौर  व अध्यक्ष का निर्वाचन प्रत्यक्ष प्रणाली से होगा अथवा पार्षदों का निर्वाचन राष्ट्रीय दलों से अलग निर्दलीय आधार पर होगा। देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है। आरक्षण बदलता है या अप्रत्यक्ष प्रणाली का निर्णय।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें

Please Share This News By Pressing Whatsapp Button



स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

जवाब जरूर दे 

[poll]

Related Articles

Back to top button
Don`t copy text!
Close