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सन्डे स्पेशल..कद, वजूद और सम्मान की लड़ाई में खरे उतरे वेदांती..  जिला पंचायत उपाध्यक्ष का चुनाव जीतकर एक बार फिर राजनीति की मुख्यधारा में लौटे वेदांती…

विरोधियों की हर कोशिश साबित हुई नाकाम... लय बरकरार रही तो आगे और धमाका कर सकते हैं तिवारी...

 

अनूप बड़ेरिया
कभी उनके समर्थक नारा लगाया करते थे.. वेदांती तिवारी सब पर भारी.. लेकिन समय का पहिया ऐसा घूमा की दो बार का विधानसभा चुनाव लड़े और कांग्रेस की राजनीति का एक बड़ा चेहरा वेदांती तिवारी पिछले 1 साल से राजनीति के नेपथ्य में चले गए या यह कह सकते हैं की बड़े नेताओं ने उलझे हुए राजनीतिक समीकरण के तहत उन्हें दरकिनार करने की बड़ी कोशिश की गयी । यह वह समय था जब वेदान्ती तिवारी सब पर भारी के नारी की गूंज भी मंद हो गई थी। लेकिन कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं है और कब कौन अर्श पर और कब कौन फर्श पर चला जाए कुछ नहीं कहा जा सकता।
त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव का बिगुल फूंकने के साथ ही वेदांती तिवारी ने भी जिला पंचायत सदस्य के चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। कांग्रेस पार्टी का बड़ा चेहरा होने के बावजूद पार्टी ने उन्हें समर्थन ना देकर जनपद पंचायत के उपाध्यक्ष अनिल जायसवाल को अपना प्रत्याशी बनाया। तब यह कयास लगाए जाने लगे की यदि यह चुनाव विधान की तिवारी हार जाते हैं तो उनके राजनीतिक भविष्य का अंत हो सकता है लोग यह भी कहने लगे विधायक का चुनाव लड़ने वाले नेता कि अब इतने दुर्दिन दिन आ गए हैं कि डिमोशन लेकर वह पंचायत का चुनाव लड़ रहे हैं। कुल मिलाकर यह वेदांती तिवारी के लिए यह कद, वजूद और सम्मान बचाने की अग्नि परीक्षा थी। कई बड़े कांग्रेसी नेता तो यह भी कहते थे कि चुनाव लड़ने के लिए वेदान्ती तिवारी के पास समर्थक भी नहीं है। लेकिन वजूद की इस लड़ाई में वेदांती तिवारी खरे उतरे और उन्होंने भारी मतों से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीत लिया। चुनाव के दौरान जिस तरह वेदांती तिवारी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं और समर्थकों का हुजूम उमड़ पड़ा, उससे भाजपाइयों से ज्यादा कांग्रेसियों को सदमा लगा। लकड़ी की बैलगाड़ी में सवार वेदांती तिवारी इस चुनाव में और परिपक्व होकर उभरे उनकी परिपक्वता का अंदाजा चुनावी प्रचार के दौरान उनके भाषणों से लगाया जा सकता है।
वेदान्ती की इस जीत से कांग्रेस और भाजपा के तमाम कोशिशों पर पानी फिर गया। इतना ही नहीं चुनाव जीतने के बाद जिस तरह उन्होंने कोरिया कुमार की समाधि स्थल पर जाकर अपनी जीत को उन्हें समर्पित किया, यह लोगों के मन में घर कर गया।
जिला पंचायत का चुनाव जीतने के बाद वेदांती तिवारी ने उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ने का मन बनाया। इकलौते निर्दलीय प्रत्याशी होने की वजह से लोगों के मन में संशय था। बावजूद इसके साइलेंट मोड में शानदार रणनीति के साथ वेदांती तिवारी ने पूर्व मंत्री के पुत्र को चुनाव में पराजित करते हुए जिला पंचायत के उपाध्यक्ष पद पर अप्रत्याशित रूप से शानदार जीत हासिल की। इस जीत से भाजपा से ज्यादा कांग्रेसी खेमे में सन्नाटा छा गया। दरअसल कांग्रेस के ही कुछ नेता स्वच्छ प्रतिस्पर्धा को दरकिनार कर वेदांती के वजूद को इसलिए समाप्त करने की कोशिश में लगे रहे कि कहीं कांग्रेस का यह नेता आगे हमारी राह का रोड़ा ना बन जाए। अंततोगत्वा अपने व्यवहार स्वच्छ छवि और कार्यकुशलता की वजह  निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में वेदांती तिवारी ने इस लड़ाई में अपनी एक छाप छोड़ दी है। जिस प्रकार एक बार फिर वेदांती तिवारी राजनीतिक मुख्यधारा में लौट आए हैं और इसी प्रकार उनकी राजनैतिक एनर्जी बनी रहे तो आने वाले समय में यह ब्राह्मणों नेता कोई बड़ा राजनीतिक धमाका कर सकता है…! और उनके समर्थकों का यह नारा वेदांती तिवारी सब पर भारी कहीं ना कहीं अब सार्थक नजर आ रहा है…

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