
आत्मशुद्धि के लिए समताभाव आवश्यक है- साध्वी विचक्षण
दक्षिणापथ, दुर्ग। आनंद मधुकर रतन भवन की धर्मसभा आज शुद्ध सामायिक विषय पर आधारित रही। आनंद पुष्कर दरबार में साध्वी प्रियदर्शना की प्रेरणा से आज गणधर तप प्रारंभ हुआ और बडी संख्या में जैन समाज के लोग इस तप की अराधना करने आगे बडकर हिस्सा ले रहे है। इस तप में एक उपवास करना है उसके पश्चात् दूसरे दिन बियासना रहना है। प्रात: 6 बजे से युवाओं के लिये आनंद श्रृत धारा की कक्षा प्रारंभ है जिसमें साध्वी विचक्षण श्री एवं साध्वी अपृता श्री जैन धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करा रहे हैं। दोपहर को महिलाओं की धार्मिक संस्कार शिविर प्रारंभ है। आज धर्मसभा में श्रीमती लता कांकरियाए तिरूमला कटारिया श्रीमती रशमी काकंरिया ने आठ उपवास का संकल्प साध्वी रत्न ज्योति ने दिया। धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी विचक्षण श्री ने कहा क्षमता के अभाव में उपासना उपहास बन जाती हैं आत्मशुद्धि के लिए समताभाव आवश्यक है। समता का आश्रय लिए बिना कहीं भी शान्ति नहीं है। समभाव अध्यात्म यात्रा में मार्गदर्शक है। समभाव के मुख्यत पांच प्रकार है। पहला सब प्राणियों के प्रति समभाव दूसरा भेद विज्ञान रूप समभाव, तीसरा आत्मभाव रमण रूप समभाव, चौथा मैत्रीभाव मूल समभाव और पॉचवा परिस्थितिक समभाव जो व्यक्ति सुख, दुख, बुराई, प्रशंसा, अनुकूल प्रतिकूल परिस्थ्तियों में समभाव रखता है, वहीं मुक्ति है। एक व्यक्ति प्रतिदिन एक लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान करता है और दूसरा व्यक्ति दो घडी की समभाव से शुऋ सामायिक करता है तो शुद्ध सामायिक की साधना वाला महान है।
साध्वी रत्नज्योति ने कहा जैन धर्मदर्शन में तीर्थकर पर श्रेष्ठ माना गया हैा जिस प्रकार कोई विशिष्ट साधक उच्च कोटि की साधना के द्वारा तीर्थकर बनता है। उसी प्रकार गणधर पद की साधना के लिए उच्च कोटि की साधना करनी पडती है। गणधर शब्द का अर्थ लोकोत्तर ज्ञान दर्शन आदि गुणों के गण को धारण करने वाले गणधर होते हैं। तीर्थकरों की वाणी को सूत्र रूप से संकलित करने वाले महापुरूष को गणधर कहते हैं। साधु साध्वी समुदाय की व्यवस्था का संचालन करने वाले मुनि को गणधर कहा गया है। श्रमण संघ में श्रावक श्राविकाओं में गणधर तप आराधना आज से प्रारंभ हो गई है गणधर तप की आराधना से कर्मो की निजरी होती है।