कोरिया किन्नरों के समक्ष जीवन यापन के पड़े लाले…कोरोना कॉल में बंद पड़ा है इनका परम्परागत व्यवसाय… शासन से मदद की गुहार…
अनूप बड़ेरिया
कोरोना महामारी जैसे संकट दौर से पूरा विश्व जूझ रहा है। खासकर आर्थिक संकट का अच्छा खासा असर देखा गया है। शुरुआती दिनों मे मजदूरों के घर वापसी से लेकर कामगारों का घर की ओर कूच करना वो बुरे दिन इतिहास में दर्ज हो गया ।
हम बात करेंगे थर्ड जेंडर यानी किन्नर समुदाय की लाकडाउन में जिनकी जिंदगी बद से बदतर होते चली गयी और उनके रोजगार के अवसर में चलने वाली रेल के पहिए थम गए। इनके परंपरागत व्यवसाय जैसे लोगों के घरों में शादी ब्याह में नाच गाने के लिये बुलावा बंद हो गया…. घरों में आशीर्वाद के लिये बधाइयां बंद हो गयी… इन किन्नरों के पेट पालने के सभी दरवाजे बंद हो गये…! लाकडाउन के शुरूआती दिनों में बची हुई शेष जमा पूंजी भी खाने पीने में खत्म हो गयी।अब इनके सामने रोजी रोटी की समस्या गंभीर होती जा रही है। कोरोना संकट काल के पूर्व थर्ड जेंडर किन्नर समुदाय लोगों के घरों में बधाई संदेश शादी ब्याह में नाच गाना व ट्रेनों में भिक्षावृत्ति करके अपना पेट पालने का काम करते थे। इसके अलावा पेट पालने का कोई मजबूत आधार नही हुआ करता है।
कुछ इसी प्रकार कोरिया में रह रहे दर्जनों थर्ड जेंडर यानी किन्नर समुदाय के लोग कहते हैं कि इस बुरे दौर में प्रशाशन की तरफ से भी हमे कोई राहत व राशन सामग्री उपलब्ध नही हुई। जबकि आमजनों को जगह जगह दी जा रही थी लगभग 10 वर्षों से बैकुण्ठपुर में किराये के मकान में रह रहे दर्जनों किन्नर के आज तक राशन कार्ड भी नही बने हैं। उनके बदले उन्हें कोई रोजगार नही देता, काम पर नही रखता और समाज भी उपेक्षा की नजर से देखता है। भले बुरे शब्दो से उच्चारित करता है एक किन्नर ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए यहां तक कहा कि जब हमारे माँ-बाप और परिवार ही हमारी उपेक्षा करते हैं, तो हम समाज से कैसे उम्मीद करे।
इस आर्थिक व रोजी रोटी के संकट से जूझ रहे परेशान कोरिया के किन्नरों ने प्रशासन से माँग की है अन्य राज्यो की तरह व छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों की तरह उन्हें भी प्रशासन से मदद मिले, ताकि वे भी अपनी रोजी रोटी खुद कमा कर आत्मनिर्भर बन सके समाज मे उन्हें जीने का हक मिले लोग भले बुरे शब्दों का प्रयोग ना करे ।