
सत्ता वापसी: बीजेपी ही कांग्रेस को रास्ता देगी!.बीजेपी के 2014 के नारे “अब की बार” को “फिर एक बार” में तब्दील होने का रास्ता मुश्किल…हाईकोर्ट अधिवक्ता महेन्द्र दुबे का लेख..
सत्ता वापसी: बीजेपी ही कांग्रेस को रास्ता देगी!
…..महेंद्र दुबे!
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चौकिये मत और ज्यादा पीछे भी मत जाइये! बस बीते एक साल का ही सियासी लेखा जोखा जेहन में बिठा लीजिये और आगे पढ़िये! दिसम्बर 2018 में बीजेपी से हिंदी पट्टी के तीन राज्य छीन चुकी कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में केंद्रीय सत्ता में वापसी के ख्वाब देख रही थी। पिछले बार के उलट नरेंद्र मोदी की लार्जर देन एवरीथिंग वाली छवि, पब्लिक डोमेन से करीब करीब गायब थी और नोटबन्दी, आर्थिक मंदी, बैकिंग सेवा में सेवाशुल्क और पेनाल्टी की मार, बैंको का करोड़ों लेकर भागे सरकारी सरंक्षण प्राप्त भगोड़े, पब्लिक सेक्टर का कारपोटीकरण, राफेल डील, बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दे बीजेपी के 2014 के नारे “अब की बार” को “फिर एक बार” में तब्दील होने का रास्ता मुश्किल किये हुए थे! इधर पिछली बार की आक्रमकता बीजेपी के ज्यादतर काडर से गायब थी उधर राहुल गांधी के नेतृत्व में तीन राज्यों का सेमीफाइनल जीत कर लोकसभा चुनाव के फाइनल में पहुंची कांग्रेस सकारात्मक परिणाम की उम्मीद लगाए धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी! राहुल गांधी की आमसभाओं में खिंचती भीड़ ने कांग्रेस को उत्साहित और आक्रमक कर रखा था! कुल मिला कर, उस वख्त मोदी सरकार का फेलियर ऑफ गवर्नेंस चुनावी समीकरण को कांग्रेस विरुद्ध भाजपा की ओर ले जा रहा था!
चुनाव पास आते आते राफेल डील के घटनाक्रम पब्लिक स्पेस में जेरे बहस हो चुके थे! भाजपा की तमाम कोशिश के बाद भी नरेंद्र मोदी का कथित जादू पिछली दफा की तरह असरकारी नहीं दिख रहा था! कांग्रेस का खेल लभभग जमने लगा था कि कांग्रेसी, राहुल गांधी के मुंह से अनायस निकला जुमला “चौकीदार ही चोर है” को पकड़ कर नरेंद्र मोदी को चुनावी बहस के केंद्र में लाने की अक्षम्य गलती कर बैठे! बस कांग्रेस की इसी चूक ने नरेंद्र मोदी के अवतारी व्यक्तित्व को फिर एक बार बड़ा चुनाव मटेरियल बना दिया और आक्रमकता के नाम पर कांग्रेस के मंच से बार बार दोहराये जाने वाले इस जुमले ने बीजेपी की वापसी की राह आसान कर दी! बाकी सियासी समीकरण जो उस वख्त बन बिगड़ थे, उनके फायदे नुकसान तो कांग्रेस बीजेपी दोनों को थे मगर चौकीदार ही चोर है का जवाब बीजेपी ने बेहतरीन रणनीति के साथ “मैं भी चौकीदार हूं” का व्यापक अभियान छेड़ दिया जिसका नतीजा ये रहा कि “सब कुछ सही है लेकिन मोदी को एक मौका और मिलना चाहिए” की भावना परवान चढ़ने लगी और चुनाव अभियान को गुड गवर्नेंस में “बीजेपी ठीक या कांग्रेस” के बड़े फलक से उतार कर मोदी वर्सेस राहुल की संकरी गली में उतार दिया! कांग्रेसी चाहे कितना भी हांक लें लेकिन आम आदमी की नजर में मोदी के बराबर खड़े होने का कद राहुल गांधी के पास, उस वख्त तो कतई नहीं था! इसी व्यक्तिगत तुलना में मोदी भारी पड़े और घर घर शौचालय, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे जनता से जुड़े मुद्दे से वोटरों के एक तबके में पैठ जमा चुकी केंद्र सरकार की पाकिस्तान के विरुद्ध उस दौरान दिखाई गई आक्रमकता ने न केवल भाजपा सरकार की तमाम असफलताओं पर राष्ट्रवाद का पर्दा डाल दिया बल्कि पुलबामा अटैक से उपजे राष्ट्रीय गुस्से की वजह से वोटर के दिमाग मे, पोलिंग बूथ जाने के पहले तक “आयेगा तो मोदी ही” पूरी तरह बैठ चुका था और जब नतीजा आया तो कांग्रेस के हाथों से तोते उड़ चुके थे!
अब वापस महाराष्ट्र और हरियाणा के अभी अभी सम्पन्न विधानसभा चुनाव के परिणामों पर गौर कीजिए! दिसम्बर 2018 के तीन राज्यों के चुनाव भी विधानसभा के ही थे जिसमें बीजेपी हारी थी मगर लोकसभा में केवल और केवल मोदी के नाम पर बम्पर बहुमत लेकर वापसी की थी! महाराष्ट्र और हरियाणा में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व चुनावी अभियान से गायब ही रहा था, समर्थन या विरोध के हर स्तर में हावी रहने वाला मोदी का व्यक्तित्व कहीं चर्चा में नहीं था, स्थानीय मुद्दों पर लड़े गए इस चुनाव में मोदी की लार्जर देन एवरीवन वाली इमेज नदारत थी, परिणाम ये रहा कि वोटर को मोदी की इमेज से बाहर आकर बुनियादी मुद्दों पर सोचने की फुर्सत मिल गयी और कांग्रेस के बेमन से चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस का ग्राफ ऊपर उठा और बीजेपी को लगभग हार जैसी जीत से सब्र करना पड़ा! यहां ये भी अहम है कि तीन राज्यों के दिसम्बर 2018 के चुनाव भी विधानसभा के ही थे मगर भाजपा राज्य सरकार से ज्यादा मोदी सरकार की उपलब्धियों के ही नाम पर ही वोट मांग रही थी लेकिन जनता जानती थी कि इस चुनाव में मोदी को नहीं चुना जाना है फिर भी सारे चुनावी समीकरण मोदी के इर्दगिर्द ही बिठाए गए थे हालांकि उस वख्त राजस्थान में हर पांच साल में सत्ता बदलने की प्रवत्ति और मप्र, छत्तीसगढ़ में 15 साल के बाद बीजेपी शासन से जनता का ऊब जाना भी महत्वपूर्ण था!
ऊपर की तुलना से बहुत आसानी से ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कांग्रेस को आगे अगर सत्ता वापसी करनी है तो मोदी विरोध से ऊपर उठना होगा! उसे अपने चुनावी अभियान में नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व, उनके कहीं गयी बातों और दिखाये गए हावभाव को हर बहस से बाहर रख कर मोदी सरकार की बजाय भाजपा सरकार कहने की आदत डालनी होगी और केंद्र सरकार के गवर्नेंस के मुद्दे पर केंद्रित रह कर सरकार के खिलाफ जनमत तैयार करने की कोशिश करनी होगी। टीवी डिबेट से लेकर सोशल मोडिया कैम्पेन में केंद्र सरकार के हर मामले में नरेंद्र मोदी और आरएसएस को घुसाने से बचना होगा! कांग्रेस के समर्थक अनुषंगी संगठनों को समझना होगा कि नकारात्मक ही सही मोदी की लगातार चर्चा ही नरेंद्र मोदी की असल ताकत है और कांग्रेस और उससे जुड़े लोग रोजबरोज मोदी का नाम लेकर उनकी इस ताकत को बढाने का काम ही करते है! अगर सरकार की तनक़ीद के नाम पर मोदी के व्यक्तित्व पर केंद्रित आलोचना न की जाये और उनके समर्थक टीवी चैनलों पर मोदी के कारनामे बखान करने वाले एंकरों को मोदी की बजाय बीजेपी सरकार के कारनामे बता कर, तार्किकता और सलाहियत से उसका जवाब दिया जाए तो यकीन कीजिये कुछ अरसे में मोदी भाजपा से लार्जर दिखने की बजाय भाजपा के भीतर नजर आने लगेंगे! साथ ही कांग्रेस और उनके समर्थकों को हर फोरम पर सोते जागते मोदी पर हमला करने की प्रवत्ति से बचना होगा और तनक़ीद केवल और केवल सरकार की हो वो भी सरकार को मोदी सरकार की बजाय भाजपा सरकार बता कर! ऐसा करने से नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व खुद बखुद पब्लिक डोमेन से जाता रहेगा और आम आदमी को मोदी की इमेज से निजात पाकर सरकार के काम काज का आंकलन करने का मौका उपलब्ध होगा! हालांकि 2024 में दस साल भाजपा सरकार के चलने के बाद एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर भी होगा मगर मोदी को आम चर्चा से बाहर करके यदि कांग्रेस तथ्य और तर्क के साथ भाजपा सरकार पर हमला जारी रखती है तो यकीन कीजिये भाजपा अपने फेलियर आफ गवर्नेंस से खुद कांग्रेस को वापसी का रास्ता देगी, अगर ये बात समझ आये तो ठीक वरना मोदी मोदी करने वाले 2024 में शायद ही कम होंगे!