क्वांटम जगत को मिला नया शक्तिशाली माइक्रोस्कोप… कोरिया के डॉ.मनीष गर्ग और जर्मन वैज्ञानिक प्रो.क्लॉस केर्न का करिश्मा.. कोरिया जिले के भारतीय वैज्ञानिक मनीष हैं जर्मनी में..दुनिया मे क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मीद
क्वांटम जगत को मिला नया शक्तिशाली माइक्रोस्कोप… कोरिया के डॉ.मनीष गर्ग और जर्मन वैज्ञानिक प्रो.क्लॉस केर्न
का करिश्मा.. कोरिया जिले के भारतीय वैज्ञानिक मनीष हैं जर्मनी में..दुनिया मे क्रांतिकारी परिवर्तन की उम्मीद
मनेंद्रगढ़ से ध्रुव द्विवेदी
हमारे दैनिक जीवन तथा ब्रह्माण्ड की तमाम घटनाओं को वह चीजे सबसे अधिक प्रभावित करती हैं जो अत्यंत सूक्ष्म होती हैं तथा जिन्हें हमारी आँखे देखने में सक्षम नहीं हैं . दुसरे शब्दों में हमारे आसपास घटित होने वाली सभी प्राकृतिक घटनाएँ जिसमे हमारे शरीर को नियंत्रित करने वाली तमाम प्रक्रियाएं भी शामिल हैं अत्यंत शूक्ष्म स्तर से आरम्भ होती हैं . इन शूक्ष्म स्तर पर आरम्भ होने वाली तमाम प्रक्रियाओं में शामिल होने वाले रहस्यमयी शूक्ष्म कणों को समझना वैज्ञानिको के समक्ष आज भी एक चुनौती बना हुआ है. वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि जितना इन रहस्यमयी शूक्ष्म कणों की प्रकृति और व्यवहार को समझा जा सका है वास्तव में उतना ही विज्ञानं और प्राद्यौगिकी का विकाश संभव हो सका है .
इन आँख से न दिखने योग्य सूक्ष्म कणों को देखने के लिए सर्वप्रथम 16 वीं शताब्दी में डच वैज्ञानिक ज़चरिआस जेनसन ने एक ऐसे प्रकाश सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) यंत्र की खोज की थी जो शरीर की एकल कोशिका को देखने में सक्षम था ।लेकिन इस पद्धति से बने सूक्ष्मदर्शी यंत्रों की क्षमता ऐब लिमिट के कारण सीमित होकर रह गयी जो इन्हें आधा माइक्रोन तक के शूक्ष्म कणों को देखने में ही सक्षमता प्रदान कर पाती थी .आगे चलकर प्रतिदीप्ति (फ्लुरोंसंस) शूक्ष्मदर्शी यंत्र की खोज हुई जिनके माध्यम से 50 नैनोमीटर तक के शूक्ष्म कणों को देख पाना संभव हो पाया . लेकिन अब तक ज्ञात शूक्ष्म कण जैसे कि परमाणु को देख पाने के लिए इससे भी एक हजार गुना ज्यादा आवर्धन क्षमता के शूक्ष्मदर्शी यंत्र की आवश्यकता थी . ऐसी परिस्थिति में पदार्थ के शूक्ष्म कणों अर्थात अलग-अलग परमाणुओं को देखने हेतु वैज्ञानिकों को एक अपरंपरागत माइक्रोस्कोप के निर्माण की जरूरत महसूस हुई । इसी प्रयास में 1980 के दशक के अंत में पहली बार स्विस और जर्मन वैज्ञानिकों ‘रोहर और बिनीग’ ने ठोस सतह पर एक तेज धातु की नोक को घुमाकर परमाणुओं को देखने में सफलता पायी । इस अपरंपरागत माइक्रोस्कोप ने दो परमाणुओं के बीच सुरंग बनाने की एक क्वांटम यांत्रिक घटना का उपयोग किया, जिनमें से एक परमाणु धातु की नोक पर और दूसरा ठोस सतह पर था। इस अपरंपरागत माइक्रोस्कोप को बाद में स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोप (एसटीएम) के रूप में जाना जाता था। बहरहाल, इस माइक्रोस्कोप में एक बुनियादी खामी यह थी कि यह केवल परमाणुओं और इलेक्ट्रॉनों की औसत मात्रा को ही माप सकता था।
जबकि ज्ञात मूलभूत कण जैसे कि इलेक्ट्रान ,परमाणु के अन्दर अंत्यंत तीब्रता से गतिमान रहते हैं . जिनके कारण मौलिक इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रियाएं जैसे उनकी गति एक स्तर से दूसरे स्तर तक तात्कालिक नहीं होती हैं, बल्कि उसके लिए एक अत्यंत शूक्ष्म समय की आवश्यकता होती है, जो कि कुछ सैकड़ों एटोसेकंड के बराबर होती है। एक एटोसेकंड एक सेकंड का एक अरबवां हिस्सा है। एक एटोसेकंड को समझने के लिए यदि हम सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आयु तथा एक सेकंड के बीच तुलना करें तो हम पाते हैं कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड की आयु तथा एक सेकंड में जो सम्बन्ध है वही एक सेकेंड तथा एक एटोसेकंड के बीच में है .
इतने शूक्ष्म गामी कणों का पता करने हेतु लेजर-भौतिकी के क्षेत्र में प्रगति करते हुए पिछले दशकों में वैज्ञानिकों ने इलेक्ट्रॉनों की गति का पता लगाने के लिए स्ट्रोबोस्कोप नामक यंत्र बनाया जो परमाणुओं के अन्दर इलेक्ट्रोन की गति को देख पाने में सक्षम तो हुआ ।लेकिन हर दूसरी वैज्ञानिक तकनीक की तरह, एक ही तकनीक से अकेले सब कुछ कर पाना संभव नहीं हो पाता है; लिहाजा यह अल्ट्राफास्ट स्ट्रोबोस्कोप किसी एक परमाणु या अणु में इलेक्ट्रॉन की गति का पता नहीं लगा सकता था, बल्कि किसी परमाणु के अन्दर सैकड़ों की संख्या में एक साथ इकट्ठे इलेक्ट्रॉनों को देख पाने तक यह सीमित होकर रह गया था .आरम्भ में उल्लिखित प्रकाश माइक्रोस्कोप की तरह इस अल्ट्राफास्ट स्ट्रोबोस्कोप में केवल एक माइक्रोन की एक दृश्य क्षमता है, लेकिन यह इलेक्ट्रॉन की गति की बेहद तेज आवृत्ति को माप सकता है।
अब जर्मनी के स्टुट्गार्ट में स्थित ‘मैक्स प्लांक सॉलिड स्टेट अनुसन्धान संस्थान ’ में शोधरत भारतीय वैज्ञानिक डॉ.मनीष गर्ग और जर्मन वैज्ञानिक प्रो.क्लॉस केर्न ने इलेक्ट्रॉनों की गति का पता लगाने के लिए माइक्रोस्कोप की दृश्य क्षमता तथा अल्ट्राफास्ट स्ट्रोबोस्कोप के इलेक्ट्रोन की गति को नापने की क्षमता की दो अलग अलग तकनीकों को मिलाकर एक नया करिश्मा कर दिखाया है। डॉ.मनीष गर्ग के अनुसार “ इन दो तकनीकों को मिलाकर हमने इन दो अलग तकनीकों की खामियों को आसानी से दूर कर दिया है । इलेक्ट्रॉनों को अब प्रकाश की अल्ट्राफास्ट फ्लैश द्वारा एक अत्यंत तेज गति में सेट किया जा सकता है, जिसे बाद में इसे एटॉमिक स्केल पर रखकर सेन्स किया जाता है.” उनहोंने कहा कि इस जटिल प्रक्रिया में दो अल्ट्राफास्ट लाइट फ्लैश को एक एसटीएम में मौजूद तेज धात्विक टिप की परमाणु संवेदन क्षमता के साथ मिलाकर एक नयी तकनीक को जन्म दिया गया है . इस ऐतिहासिक वैज्ञानिक प्रयोग में शामिल दुसरे वैज्ञानिक प्रो. क्लास कर्न के अनुसार “इस तकनीक के माध्यम से एटॉमिक स्केल में इलेक्ट्रोन को वर्तमान इलेक्ट्रोनिक उपकरणों की मौजूदा कम्पन क्षमता से लगभग सौ गुना अधिक कम्पन क्षमता पर कम्पित करके देखा जा सका है, वर्तमान इलेक्ट्रोनिक उपकरणों तथा कंप्यूटर में इलेक्ट्रान के कम्पन की आवृत्ति अधिकतम एक अरब हर्ट्ज़ होती है अब प्रकाश की अल्ट्राफास्ट फ्लैश द्वारा इसे एक ख़राब हर्ट्ज़ तक बढाया जा सकता है ” । विज्ञानं के क्षेत्र में इस नवीनतम प्रगति ने प्रकृति में घटित हो रही क्वांटम घटनाओं को समझने में एक नयी उम्मीद पैदा कर दी है . अभी तक मोबाइल फ़ोन और कंप्यूटर के अन्दर चल रही शूक्ष्म प्रक्रियाएं सिर्फ एक अनुमान के आधार पर संचालित होती थी जिनका अब विडियो बनाकर देखा जा सकेगा. किस निश्चित समय पर इलेक्ट्रोन की पोजीशन का पता लगाकर जटिलतम रासायनिक प्रक्रियाओं को समझा जा सकेगा . इन जटिल रासायनिक प्रक्रियाओं में में गंभीर असाध्य बीमारियों के मूलभूत कारण भी छिपे हुए हैं जिनका सही पता लगाने में आसानी होगी ऐसा वैज्ञानिको का मानना है . प्रकाश-तरंग-इलेक्ट्रॉनिक्स के रूप में जानी जाने वाले इस वैज्ञानिक विधा के माध्यम से ऊर्जा संरक्षण के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाये जा सकते हैं .साथ ही इस तकनीक के माध्यम से निकट भविष्य में वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों को दस लाख गुना तक तेज बनाया जा सकता है .इस महत्वपूर्ण वैज्ञानिक खोज को विश्व की सबसे प्रतिष्ठित एवं सम्मानित वैज्ञानिक जर्नल ‘साइंस’ के २४ जनवरी के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है .
डॉ मनीष गर्ग तथा जर्मन वैज्ञानिक प्रोफेसर क्लास कैर्न द्वारा कई वर्षों से लगातार किये जा रहे प्रयास के बदौलत क्वांटम जगत को यह एक अद्भुत माइक्रोस्कोप मिल गया है जिससे इलेक्ट्रोनिक उपकरणों के शूक्ष्म अंगो के अन्दर तथा अणु-परमाणु के भीतर चल रही जटिल प्रक्रियाओं को अब फिल्माया जाना भी संभव हो गया है .इस माइक्रोस्कोप तकनीक की खोज से क्वांटम स्तर पर घटित होने वाली घटनाओं की एच डी क्वालिटी की विडियो बनाना आसान हो गया है दुसरे शब्दों में यह नूतन माइक्रोस्कोप क्वांटम जगत का एक एच डी कैमरा भी है .इन दोनों वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गयी इस नयी माइक्रोस्कोपिक तकनीक से परमाणु के अन्दर गतिमान अत्यंत तीब्रगामी कण इलेक्ट्रोन की गति के विषय में अभी तक रहस्यपूर्ण बनी हुई जानकारियों को जुटाने में सफलता मिलने की नयी उम्मीद जगी है जो पूरी दुनिया में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सफल होगी .